


देश की आज़ादी में नारी शक्ति का योगदान अत्यंत प्रेरणादायक और गौरवशाली रहा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने न केवल पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया, बल्कि कई बार नेतृत्व भी संभाला। उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलनों, सत्याग्रह, जनजागरण और समाज सुधार में अहम भूमिका निभाई। इन महान महिलाओं ने न केवल स्वतंत्रता की लड़ाई को मजबूती से आगे बढ़ाया, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका को भी क्रांतिकारी रूप से बदला। वे प्रेरणा की जीवित मिसाल हैं।
सरोजिनी नायडु
'भारत की कोकिला' के नाम से विख्यात, वे एक कवयित्री और दूरदर्शी नेता थीं। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया—वे कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं और नागरिक अवज्ञा आंदोलनों में सरोजनिक भूमिका निभाई।
रानी लक्ष्मीबाई
1857 के संघर्ष में रानी लक्ष्मीबाई ने साहस और नेतृत्व का परिचय देते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध भयंकर लड़ाई लड़ी। उन्होंने झांसी को बचाने के लिए खुद युद्धभूमि में उतरकर सेना का नेतृत्व किया।
सवित्रीबाई फुले
भारत की पहली महिला शिक्षिका और सामाजिक सुधारक, जिन्होंने पुणे में पहली लड़कियों की स्कूल की स्थापना की। वे जाति और लिंग भेद के खिलाफ निरंतर संघर्षरत रहीं।
कप्तान लक्ष्मी सहगल
स्वातंत्र्य सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय सेना की रानी ऑफ झांसी रेजिमेंट की कमांडर कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने सभी महिलाओं को प्रेरित कर आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई।
उषा मेहता
देश छोड़ो आंदोलन के दौरान गुप्त कांग्रेस रेडियो चलाने वाली उषा मेहता ने युवा आयु में ही आंदोलन को एक नया अभियानात्मक रूप दिया।
सुचेता कृपलानी
उन्होंने महिला मोर्चा की स्थापना की और आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। स्वतंत्रता के बाद वे उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं और स्वतंत्र भारत में सत्ता में दाखिल होने वाली अग्रणी महिलाओं में गिनी जाती हैं।